Tej Pratap Yadav के ‘जयचंद’ वाले बयान से सियासी घमासान, निशाने पर कौन, तेजस्वी से बढ़ती दूरी?

राष्ट्रीय जनता दल (RJD) प्रमुख लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे Tej Pratap Yadav ने रविवार को सोशल मीडिया पर एक भावुक पोस्ट साझा कर बिहार की राजनीति में एक बार फिर हलचल मचा दी है। उन्होंने खुद को सियासी साजिशों का शिकार बताया और बिना किसी का नाम लिए ‘जयचंद जैसे लालची लोगों’ पर निशाना साधा। इस पोस्ट के बाद सियासी गलियारों में कयासों का दौर शुरू हो गया है कि आखिर तेज प्रताप के निशाने पर कौन है।

तेज प्रताप का भावुक पोस्ट: ‘मम्मी-पापा ही मेरी दुनिया, जयचंद जैसे लालची लोग…’

तेज प्रताप यादव ने आज सुबह 5 बजकर 27 मिनट पर ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर एक मार्मिक पोस्ट किया। इसमें उन्होंने अपने पिता लालू प्रसाद यादव और मां राबड़ी देवी के प्रति अपने अगाध प्रेम और सम्मान को व्यक्त किया, वहीं अपने खिलाफ ‘राजनीति’ करने वालों को भी कड़ा संदेश दिया।

उन्होंने लिखा, “मेरे प्यारे मम्मी पापा… मेरी सारी दुनिया बस आप दोनों में ही समाई है। भगवान से बढ़कर है आप और आपका दिया कोई भी आदेश। आप हैं तो सब कुछ है मेरे पास। मुझे सिर्फ आपका विश्वास और प्यार चाहिए न कि कुछ और। पापा आप नहीं होते तो न ये पार्टी होती और न मेरे साथ राजनीति करने वाले कुछ जयचंद जैसे लालची लोग। बस मम्मी पापा आप दोनों स्वस्थ और खुश रहें हमेशा।”

‘जयचंद’ के इशारे, संजय यादव पर पुरानी तकरार

हालांकि, तेज प्रताप ने अपने ट्वीट में किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन राजनीतिक जानकार इसे उनके पुराने बयानों और पार्टी के अंदरूनी कलह से जोड़कर देख रहे हैं। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि तेज प्रताप का निशाना शुरू से ही उनके छोटे भाई तेजस्वी यादव के करीबी और राज्यसभा सांसद संजय यादव पर रहा है।

पिछले कई मौकों पर तेज प्रताप ने संजय यादव के खिलाफ अपनी नाराजगी जाहिर की है। चार साल पहले जब राजद युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष पद से आकाश यादव को हटाया गया था, तब तेज प्रताप ने पहले राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह और फिर संजय यादव के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। उस वक्त उन्होंने यह तक कह दिया था कि पार्टी में उनके विरोधी उनकी हत्या भी करा सकते हैं। उन्होंने संजय यादव पर हमला बोलते हुए कहा था कि “हरियाणा का आदमी लालू परिवार और राजद में मतभेद पैदा कर सकता है।” अब जब तेज प्रताप ने फिर ‘जयचंद’ शब्द का प्रयोग किया है, तो इसे पुराने विवादों की ही एक कड़ी माना जा रहा है।

क्या तेजस्वी यादव पर भी है परोक्ष निशाना?

बिहार की सियासत को करीब से जानने वाले कुछ विश्लेषकों का मानना है कि तेज प्रताप के इस बयान में परोक्ष रूप से तेजस्वी यादव पर भी निशाना हो सकता है। यह घटनाक्रम तब से शुरू हुआ माना जाता है जब तेज प्रताप (स्वास्थ्य मंत्रालय समेत अन्य जिम्मेदारियां) को अपेक्षाकृत छोटा पद देकर तेजस्वी यादव को उपमुख्यमंत्री बनाया गया था। इसके बाद जब दोबारा मौका आया तो तेज प्रताप (पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय) के पद में और कटौती की गई, जबकि तेजस्वी दोबारा उपमुख्यमंत्री बने।

कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि अगर बिहार विधानसभा चुनाव इस साल (2025) नहीं होते, तो शायद तेज प्रताप यादव पर इतनी कड़ी कार्रवाई (पार्टी से निष्कासन) नहीं होती। चुनावी साल में तेजस्वी यादव के बढ़ते कद और तेज प्रताप की बिगड़ती छवि से पड़ने वाले संभावित असर को देखते हुए उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाने का फैसला लिया गया।

निष्कासन और वायरल तस्वीर: सियासी नफा-नुकसान

यह पूरा घटनाक्रम 24 मई (शनिवार) को तेज प्रताप की एक युवती के साथ फोटो वायरल होने के बाद गरमाया। यह तस्वीर तेज प्रताप यादव के सोशल मीडिया अकाउंट से ही जारी हुई थी और दावा किया गया था कि वे उस युवती के साथ लंबे समय से रिलेशन में हैं। गौरतलब है कि ऐश्वर्या राय के साथ तेज प्रताप की तलाक की अर्जी अभी भी कोर्ट में लंबित है। इस घटना के बाद तेज प्रताप की छवि दिन-ब-दिन बिगड़ती ही जा रही थी।

इसके बाद, राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने तेज प्रताप को ‘मर्यादा लांघने’ का दोषी मानते हुए पार्टी और परिवार से निष्कासित कर दिया। तेजस्वी यादव ने भी इस फैसले पर कहा कि “मुझे न यह सब अच्छा लगता है और न बर्दाश्त करते हैं।”

इस फैसले के फायदे-नुकसान को देखें तो बिहार चुनाव पर इसका सीधा असर पड़ सकता है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता के तौर पर तेजस्वी यादव अपनी राह में किसी को नहीं आने देना चाहते थे, और तेज प्रताप की छवि उनकी राह में रोड़ा बन सकती थी। सियासी गलियारों में यह भी चर्चा है कि चुनावी साल के नफा-नुकसान को देखते हुए तेज प्रताप का राजद में बने रहना लालू-तेजस्वी के लिए घाटे का सौदा हो सकता था। हालांकि, पार्टी से अलग होकर अगर तेज प्रताप अपनी अलग पार्टी बना लें या निर्दलीय ही चुनावी मैदान में उतर जाएं, तो वे कुछ हद तक असर डाल सकते हैं, जिसका पता तो चुनावों के बाद ही चलेगा।

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