Strongest Village of India: ये है भारत का सबसे ताकतवर गाँव, कहा जाता है बाउंसर्स का गांव, यहां के हर घर में रहते हैं पहलवान

Strongest Village of India
Strongest Village of India: भारत के गांवों की बात होती है तो ज़्यादातर लोग खेती, गांव की सादगी या पुरानी परंपराओं की बात करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी ऐसे गांव के बारे में सुना है जिसे ‘भारत का सबसे मजबूत गांव’ कहा जाता है? जहां हर घर में पहलवान रहते हैं और जो दिल्ली की नाइटलाइफ़ को सबसे ज़्यादा बाउंसर देता है? ये कहानी है असोला-फतेहपुर बेरी गांव की, जिसे लोग ‘बाउंसर्स का गांव’ भी कहते हैं। तो चलिए जानते हैं इस अनोखे गांव की दमदार कहानी।
दिल्ली के बाहरी इलाके में बसे असोला और फतेहपुर बेरी — ये दो जुड़वां गांव आज एक अनोखी पहचान के साथ देशभर में चर्चा में रहते हैं। वजह है इन गांवों के युवक, जो बॉडीबिल्डर और बाउंसर के रूप में न सिर्फ दिल्ली बल्कि देश के कई हिस्सों में सुरक्षा की कमान संभाल रहे हैं।
इस अनोखी परंपरा की शुरुआत की गांव के ही विजय तंवर ने, जो ओलंपिक कुश्ती टीम में चयन से चूकने के बाद दिल्ली के एक क्लब में बाउंसर बन गए। उनकी सफलता ने पूरे गांव को एक नई दिशा दी। आज हालात ये हैं कि अकेले इस गांव से 300 से ज़्यादा पहलवान दिल्ली के क्लबों और बार में बाउंसर का काम कर रहे हैं।
लेकिन इस पेशे के पीछे सिर्फ पैसा नहीं, बल्कि अनुशासन और फिटनेस का एक पूरा कल्चर है। गांव के लड़के सुबह जल्दी उठकर अखाड़े में पसीना बहाते हैं, सैकड़ों पुशअप्स, सिटअप्स, और कुश्ती के अभ्यास उनका रोज़ का रूटीन है। शराब और तंबाकू से दूर रहना, हाई प्रोटीन डाइट और सख़्त ट्रेनिंग — यही है यहां के लोगों का फिटनेस मंत्र।
इस गांव का इतिहास भी उतना ही प्रेरणादायक है। गांव के पहले जिम के मालिक अंकुर तंवर बताते हैं कि उनके पूर्वजों ने मुग़ल आक्रमणकारियों और अंग्रेज़ों से लड़ा है। और आज की पीढ़ी एक अलग तरह की जंग लड़ रही है — फिटनेस और सम्मान की।
बिजनेस इनसाइडर की रिपोर्ट बताती है कि गांव के कई लोग बाउंसर बनने को एक शुरुआत मानते हैं। कुछ विदेशों में सिक्योरिटी इंडस्ट्री में करियर बनाना चाहते हैं, तो कुछ फिर से अखाड़े में उतरकर कुश्ती में नाम कमाना चाहते हैं।
दिल्ली की बढ़ती नाइटलाइफ़ और क्लब कल्चर ने सुरक्षा कर्मियों की मांग बढ़ा दी है — और इस मांग को पूरा कर रहा है असोला-फतेहपुर बेरी, जो आज भारत का ‘सबसे मजबूत गांव’ कहलाता है।
तो ये थी उस गांव की कहानी, जहां ताक़त सिर्फ शरीर में नहीं, सोच और संस्कार में भी है। जहां पहलवानी सिर्फ खेल नहीं, रोज़गार भी है। और जहां हर सुबह अखाड़े में गूंजती है वो आवाज़ जो बताती है कि भारत के गांव अब भी दमदार हैं, बस पहचान की देर है। अब अगली बार जब आप किसी नाइट क्लब जाएं और दरवाज़े पर कोई सख़्त चेहरा दिखे, तो याद रखिए — वो शायद असोला-फतेहपुर बेरी का ही कोई योद्धा हो!