Kargil Vijay Diwas 2025: कारगिल विजय दिवस 2025, 26 वर्षों की वीरता, बलिदान और शौर्य को सलाम

Kargil Vijay Diwas 2025

Kargil Vijay Diwas 2025

नई दिल्ली। Kargil Vijay Diwas 2025: आज पूरा देश 26वां कारगिल विजय दिवस मना रहा है। यह दिन सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि भारतीय सेना के पराक्रम, बलिदान और अदम्य साहस की प्रेरक गाथा है। वर्ष 1999 में पाकिस्तान की नापाक घुसपैठ के खिलाफ ऑपरेशन विजय के तहत भारतीय जवानों ने हिमालय की बर्फीली चोटियों पर लड़कर दुश्मनों को पीछे खदेड़ा और हर पोस्ट पर तिरंगा दोबारा लहराया। आज, 26 साल बाद, यह दिन एक बार फिर हमें याद दिलाता है कि आज़ादी और सम्मान की रक्षा के लिए भारत कभी झुका नहीं था और कभी झुकेगा नहीं।

ऑपरेशन विजय: एक सुनियोजित जवाब

कारगिल युद्ध मई 1999 में तब शुरू हुआ जब पाकिस्तान समर्थित घुसपैठियों ने चुपके से नियंत्रण रेखा पार कर उच्च पर्वतीय भारतीय चौकियों पर कब्जा कर लिया। उनका उद्देश्य श्रीनगर-लेह राष्ट्रीय राजमार्ग को काटकर कश्मीर में अस्थिरता फैलाना था। लेकिन भारत ने ‘ऑपरेशन विजय’ शुरू कर सैन्य रणनीति, साहस और संयम के साथ जवाब दिया।

करीब दो महीने तक भारतीय सेना ने दुर्गम इलाकों में संघर्ष किया। एक-एक इंच जमीन दुश्मन से छीनी गई, वो भी बिना नियंत्रण रेखा पार किए। जुलाई के अंत तक, भारत ने सभी खोई हुई चौकियों पर फिर से कब्जा कर लिया।

545 सैनिकों का सर्वोच्च बलिदान

इस विजय की भारी कीमत चुकानी पड़ी। 545 बहादुर सैनिक शहीद हुए और हजारों घायल हुए। फिर भी, उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि राष्ट्रीय सम्मान और क्षेत्रीय अखंडता बनी रहे। आज भी द्रास स्थित कारगिल युद्ध स्मारक पर अंकित नाम हर भारतीय को गर्व से भर देते हैं।

राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने वीरों को दी श्रद्धांजलि

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा, “मैं मातृभूमि के लिए प्राण न्योछावर करने वाले वीर सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित करती हूं। उनका बलिदान हर भारतीय को प्रेरणा देता रहेगा।”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर लिखा, “कारगिल विजय दिवस देशभक्ति, साहस और बलिदान का प्रतीक है। हम उन सभी वीरों को नमन करते हैं जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।”

कारगिल युद्ध: जब सैनिकों ने इतिहास रचा

कारगिल की लड़ाई किसी मैदान पर नहीं, बल्कि बर्फीली, ऑक्सीजन रहित, ऊंची और जानलेवा चोटियों पर लड़ी गई थी। वहां हर सांस पर भी हौसले की परीक्षा थी। जवानों ने प्राकृतिक चुनौतियों और दुश्मन की गोलियों दोनों से लड़ा और विजय पाई।

सैनिकों ने अपने परिवारों को जो पत्र भेजे, उनमें डर नहीं, कर्तव्य का भाव था। कई कभी वापस नहीं लौटे, लेकिन उनके बलिदान ने हर भारतीय के हृदय में अमिट छाप छोड़ी।

वीरों को मिला सर्वोच्च सम्मान

इस युद्ध में 4 जवानों को परमवीर चक्र, 9 को महावीर चक्र और 55 को वीर चक्र से नवाज़ा गया। अन्य अनेक वीरों को युद्ध सेवा पदक और सेना पदकों से सम्मानित किया गया।

  • कैप्टन विक्रम बत्रा (PVC) – “ये दिल मांगे मोर” के नारे के साथ शौर्य की मिसाल बने।

  • ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव (PVC) – बर्फीली चट्टानों पर गोली लगने के बाद भी दुश्मन के बंकरों को तबाह किया।

  • राइफलमैन संजय कुमार (PVC) – दुश्मन के हथियार छीनकर उसी से लड़ते हुए विजय पाई।

  • कैप्टन मनोज कुमार पांडे (PVC) – खालूबार की ऊंची पहाड़ियों पर वीरता का परिचय देते हुए शहीद हुए।

26वीं वर्षगांठ पर सेना की विशेष पहल

इस वर्ष, भारतीय सेना ने 26वीं वर्षगांठ को विशेष बनाने के लिए स्मरण यात्राएं, सेमिनार और श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित किए।

11 जून 2025 को, सेना की “फॉरएवर इन ऑपरेशन डिवीजन” ने तोलोलिंग चोटी पर स्मारक यात्रा आयोजित की, जिसमें युद्ध में भाग लेने वाली इकाइयों के 30 सैनिकों ने हिस्सा लिया। सेना और वायुसेना के जवानों ने मिलकर यह चढ़ाई पूरी की, जो संयुक्त बल और एकजुटता का प्रतीक बनी।

कारगिल: देशभक्ति की नई परिभाषा

कारगिल विजय न केवल एक सैन्य सफलता थी, बल्कि उसने देशभक्ति, बलिदान और संकल्प को नई परिभाषा दी। इसने एक सैनिक की छवि को हर भारतीय दिल में स्थायी रूप से बसा दिया।

आज जब द्रास की घाटियों में बिगुल बजता है, तो वह सिर्फ एक युद्ध की गूंज नहीं होती, बल्कि उस अमर आत्मबल की प्रतिध्वनि होती है जिसने भारत को झुके बिना जिंदा रखा।

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