‘ये लापरवाही नहीं, अपराध है’: बच्चों को कुत्ते का जूठा खाना परोसने पर हाईकोर्ट सख्त

बलौदाबाजार: जिले के पलारी ब्लॉक स्थित लच्छनपुर मिडिल स्कूल में मिड-डे मील के तहत बच्चों को परोसे गए कुत्ते के जूठे भोजन पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कड़ी नाराजगी जताई है। कोर्ट ने इसे बेहद गंभीर लापरवाही और अमानवीय कृत्य करार दिया है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति विभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने कहा कि बच्चों को मिलने वाला भोजन केवल सरकारी योजना की औपचारिकता नहीं, बल्कि उनके स्वास्थ्य, सम्मान और जीवन की सुरक्षा से जुड़ा विषय है।
कोर्ट का बड़ा निर्देश
कोर्ट ने मामले को गंभीरता से लेते हुए स्कूल शिक्षा विभाग के सचिव को निर्देश दिया है कि वे 19 अगस्त 2025 तक इस विषय पर व्यक्तिगत हलफनामा पेश करें और बताएं कि अब तक इस मामले में क्या कार्रवाई की गई है।
मामला क्या है?
घटना 28 जुलाई 2025 की है। जानकारी के अनुसार, लच्छनपुर मिडिल स्कूल में मिड-डे मील के दौरान ऐसा भोजन बच्चों को परोसा गया, जिसे पहले एक आवारा कुत्ता जूठा कर चुका था। बच्चों ने जब यह बात अपने अभिभावकों को बताई, तो स्कूल समिति की बैठक बुलाई गई। इसके बाद दबाव में आकर 83 बच्चों को एंटी रेबीज वैक्सीन दी गई। हालांकि, एक रिपोर्ट में यह संख्या 78 बताई गई, जिससे आंकड़ों में भ्रम की स्थिति बनी हुई है।
कोर्ट ने उठाए ये अहम सवाल:
क्या सभी प्रभावित बच्चों को समय पर वैक्सीन दी गई?
दोषी शिक्षकों और स्व-सहायता समूह के खिलाफ क्या कार्रवाई हुई?
बच्चों को किसी तरह का मुआवजा दिया गया या नहीं?
भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए क्या ठोस उपाय किए गए?
हाईकोर्ट ने खुद लिया संज्ञान
यह मामला छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट द्वारा स्वत: संज्ञान में ली गई जनहित याचिका के तौर पर सुना जा रहा है। इससे पहले कोर्ट द्वारा नियुक्त एक आयुक्त की रिपोर्ट के आधार पर महिला एवं बाल विकास विभाग और बलौदाबाजार जिला प्रशासन से भी व्यक्तिगत हलफनामे मांगे गए थे।
जानबूझकर खतरे में डाला बच्चों का जीवन: कोर्ट
कोर्ट ने कहा कि रेबीज एक जानलेवा बीमारी है, जिसका संक्रमण हो जाने के बाद इलाज संभव नहीं होता। ऐसे में बच्चों को कुत्ते के जूठे खाने परोसना केवल लापरवाही नहीं, बल्कि उनके जीवन को जानबूझकर खतरे में डालने जैसा अपराध है।
अगली सुनवाई 19 अगस्त को
अब इस मामले में अगली सुनवाई 19 अगस्त 2025 को होगी। कोर्ट ने दोहराया कि इस घटना ने न सिर्फ राज्य की योजनाओं की साख को नुकसान पहुंचाया है, बल्कि बच्चों की जान और विश्वास पर भी सीधा असर डाला है।