कांग्रेस में उलटी गंगा बहती नजर आई: जिन पुराने जिला अध्यक्षों को बदलने की बात, उन्हें ही दे दी मंडल चुनाव की जिम्मेदारी

रायपुर: लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने कांग्रेस पार्टी में नई ऊर्जा लाने और निष्क्रिय नेताओं को हटाने के उद्देश्य से “नई कांग्रेस” का विज़न सामने रखा है। इसके तहत ‘सृजन अभियान’ की शुरुआत की गई है, जिसके ज़रिए देशभर में संगठन को फिर से खड़ा करने की कोशिश हो रही है। छत्तीसगढ़ में भी इस दिशा में कदम उठाए जा चुके हैं, लेकिन शुरुआती स्तर पर ही अंदरूनी गड़बड़ियों के कारण यह प्रयास उलटी दिशा में जाता दिख रहा है।

चुनाव प्रक्रिया उन्हीं के हवाले, जो खुद दावेदार

कांग्रेस ने सभी जिलों में सेक्टरवार पर्यवेक्षक नियुक्त किए हैं, जिनमें ज़्यादातर पूर्व मंत्री और वरिष्ठ विधायक शामिल हैं। इन्हें ब्लॉक और जिला स्तर पर संगठनात्मक चुनाव की ज़िम्मेदारी दी गई है। लेकिन पार्टी सूत्रों का कहना है कि इनमें से कई पर्यवेक्षक, खुद पद के दावेदारों की पसंद से नियुक्त हुए हैं। इससे पूरी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

पुराने अध्यक्ष ही चला रहे प्रक्रिया, नई नियुक्ति अधर में

रायपुर, बिलासपुर जैसे कई जिलों में अब भी पुराने जिला अध्यक्ष पद पर बने हुए हैं। पार्टी के भीतर माना जा रहा है कि इन्हें जल्द ही बदला जाएगा, जबकि दुर्ग, रायगढ़, सरगुजा और मुंगेली जैसे जिलों में पहले से ही नए अध्यक्ष नियुक्त किए जा चुके हैं, और उन्हें बदले जाने की संभावना नहीं है।

लेकिन मौजूदा स्थिति यह है कि जिन पुराने जिला अध्यक्षों को बदला जाना है, उन्हीं के माध्यम से ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्षों के चयन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। इससे यह आशंका है कि ब्लॉक स्तर पर भी नियुक्तियां पक्षपातपूर्ण हो सकती हैं।

मंडल अध्यक्ष पद पर मची मारामारी

नई प्रणाली में मंडल अध्यक्ष को बड़ी भूमिका दी जा रही है, जिनके अंतर्गत चार से पांच वार्ड शामिल होंगे। इससे इस पद को लेकर खासी प्रतिस्पर्धा देखी जा रही है। माना जा रहा है कि जिला स्तर पर ही जोड़-तोड़ करके पसंदीदा लोगों को आगे बढ़ाया जा रहा है।

प्रक्रिया पहले उलट रही दिशा

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कांग्रेस को पहले प्रदेश स्तर पर नेतृत्व में बदलाव करना चाहिए था। उसके बाद नए जिला अध्यक्ष नियुक्त होते और फिर ब्लॉक स्तर की प्रक्रिया शुरू की जाती। इससे पारदर्शिता बनी रहती और गुटबाजी या पक्षपात की संभावना कम होती। लेकिन अब पुराने पदाधिकारी ही निचले स्तर पर चुनाव करवा रहे हैं और पर्यवेक्षक भी उन्हीं पर निर्भर हैं, जिससे विवाद की स्थिति बन रही है।

रायपुर और बिलासपुर में तीखी गुटबाजी

छत्तीसगढ़ में रायपुर और बिलासपुर दो ऐसे जिले हैं जहां संगठनात्मक चुनावों में सबसे ज्यादा गुटबाजी देखी जा रही है। रायपुर में यह विवाद सड़कों तक पहुंच चुका है, जबकि बिलासपुर में अनुशासनात्मक कार्रवाई के नाम पर एक गुट को टारगेट किए जाने की चर्चा आम है। यहां मंडल और वार्ड स्तर पर चयन प्रक्रिया अंतिम चरण में है, लेकिन पारदर्शिता को लेकर गंभीर सवाल उठाए जा रहे हैं।

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