गोद लेने वाली महिला को भी मिलेगी मातृत्व अवकाश: हाईकोर्ट का अहम फैसला

बिलासपुर हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि गोद लेने वाली महिला कर्मचारियां भी मातृत्व अवकाश और चाइल्ड केयर लीव की हकदार हैं। अदालत ने कहा कि यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आता है, जो हर मां को यह सुनिश्चित करने की आज़ादी देता है कि वह अपने बच्चे को मातृत्वपूर्ण देखभाल और स्नेह प्रदान कर सके — चाहे वह बच्चा जैविक हो, गोद लिया गया हो या सरोगेसी से जन्मा हो।
मातृत्व में भेदभाव नहीं: कोर्ट की सख्त टिप्पणी
न्यायमूर्ति विभु दत्ता गुरु की एकल पीठ ने साफ कहा कि जैविक, गोद लेने वाली और सरोगेट माताओं के बीच मातृत्व लाभों को लेकर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता। मातृत्व अवकाश सिर्फ एक सुविधा नहीं, बल्कि यह एक महिला का अधिकार है, जिससे वह अपने परिवार और नवजात की देखभाल कर सके।
याचिका की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता वर्ष 2013 से आईआईएम रायपुर में सहायक प्रशासनिक अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं। वर्ष 2006 में विवाह हुआ और 20 नवंबर 2023 को दो दिन की एक बच्ची को गोद लिया। इसके बाद उन्होंने 180 दिन के मातृत्व अवकाश के लिए आवेदन किया, जिसे संस्थान ने एचआर नीति में प्रावधान नहीं होने का हवाला देकर खारिज कर दिया।
याचिकाकर्ता को पहले ही मातृत्व लाभ अधिनियम, 2017 के तहत 84 दिन की छुट्टी दी जा चुकी थी। कोर्ट ने निर्देश दिया कि शेष अवकाश (96 दिन) को समायोजित किया जाए क्योंकि वह 1972 के नियमों के अनुसार पूरी छुट्टी की अधिकारी हैं।
नियोक्ता को होना चाहिए संवेदनशील: कोर्ट
बिलासपुर कोर्ट ने कहा कि मां बनना एक महिला के जीवन की स्वाभाविक और संवेदनशील प्रक्रिया है, और हर नियोक्ता का यह कर्तव्य है कि वह महिला कर्मचारियों के प्रति संवेदनशील और सहानुभूतिपूर्ण रवैया अपनाए। कामकाजी महिलाओं को होने वाली शारीरिक और मानसिक चुनौतियों को समझना जरूरी है।
संवैधानिक अधिकार की बात
संविधान के अनुच्छेद 38, 39, 42 और 43 का उल्लेख करते हुए कोर्ट ने स्पष्ट किया कि गोद लेने वाली माताएं भी जैविक माताओं की तरह गहरे स्नेह से जुड़ी होती हैं, और उन्हें समान अधिकार मिलना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी कोई विशेषाधिकार नहीं, बल्कि एक संवैधानिक अधिकार है।