S.Jaishankar China Visit: SCO बैठक के लिए चीन जाएंगे जयशंकर: गलवान की चुप्पी टूटेगी या फिर दिखेगी कूटनीति की पुरानी परछाई?

S Jaishankar China Visit
इस मंच पर पाकिस्तान के विदेश मंत्री भी मौजूद रहेंगे—यानि बातचीत के दायरे में दो पड़ोसी होंगे, जिनके साथ भारत के रिश्तों में तल्खी किसी से छिपी नहीं है। अब सवाल उठ रहा है—क्या जयशंकर इस मंच पर भी उसी संयमित भाषा में बात करेंगे जैसी भारत की पिछली सरकारें करती रही हैं? या फिर इस बार चीन और पाकिस्तान को उनकी ही भाषा में जवाब मिलेगा?
चीन, पाकिस्तान और SCO: क्या बदल रहा है समीकरण?
SCO की अध्यक्षता फिलहाल चीन के पास है, और इस मंच पर भारत एक मजबूत सदस्य के तौर पर शामिल होगा, जो पिछले साल (2023) इसका अध्यक्ष भी रह चुका है। लेकिन अब चीन वही देश है जिसने गलवान की हिंसा को अंजाम दिया और हाल ही में पाकिस्तान के ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में खुले तौर पर साथ खड़ा दिखाई दिया।
पिछले महीने भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जब SCO की बैठक में शामिल हुए थे, तो उन्होंने पाकिस्तान के रक्षा मंत्री के सामने ही आतंकवाद पर तीखी आलोचना की थी, और जब संयुक्त घोषणा पत्र (जॉइंट स्टेटमेंट) में आतंकवाद पर स्पष्ट शब्द नहीं थे, तो हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था।
अब देखना ये है कि क्या जयशंकर भी वही रुख अपनाएंगे?
एलएसी पर हालात जस के तस
भारत-चीन सीमा पर स्थायी समाधान की राह अब भी धुंधली है। देपसांग और डेमचॉक क्षेत्रों में भले थोड़ी प्रगति हुई हो, लेकिन गलवान, हॉटस्प्रिंग्स और गोगरा जैसे इलाकों में बफर ज़ोन अब भी बने हुए हैं। वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर शांति का दिखावा है, लेकिन ज़मीन पर विश्वास की खाई आज भी गहरी है।
भारत का अगला कदम: संदेश या सिर्फ संवाद?
भारत आज वैश्विक मंचों पर कड़ा रुख दिखा रहा है—चाहे वो QUAD हो, BRICS हो या G20। लेकिन चीन की धरती पर SCO जैसे मंच से क्या संदेश जाएगा, इस पर देश की निगाहें टिकी हैं।
क्या जयशंकर भी “सामूहिक बयानबाज़ी” की बजाय साफ और सख्त संदेश देंगे? या फिर शांति और संयम की वही पुरानी भाषा दोहराई जाएगी?
डिप्लोमेसी की परीक्षा
डिप्लोमेसी अब सिर्फ बैठकों और दस्तावेज़ों की बात नहीं रही—यह ताकत, स्थिरता और जवाबदेही की भी कसौटी बन चुकी है। चीन-पाकिस्तान की जोड़ी SCO में भारत के खिलाफ लगातार सॉफ्ट पावर चालें चलती रही है। अब भारत की रणनीति क्या होगी—यह जयशंकर के शब्दों और रुख से तय होगा।
नज़र अब इस बात पर है कि जयशंकर तियानजिन में सिर्फ कूटनीतिक औपचारिकताएं निभाकर लौटते हैं या फिर वहां से कोई सख्त राजनीतिक संदेश भी लेकर आते हैं। आने वाला हफ्ता तय करेगा कि भारत की विदेश नीति में कितनी धार बाकी है… और क्या गलवान की चुप्पी अब जवाब में बदलेगी।