“वोट चोरी” पर राहुल गांधी और EC आमने-सामने, 7 दिन में सबूत दो या माफी मांगो!

लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और चुनाव आयोग (ECI) के बीच “वोट चोरी” के आरोपों को लेकर सियासी और कानूनी टकराव गहरा गया है। 17 अगस्त 2025 को प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने विपक्षी दलों पर मतदाता सूची पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर गलत सूचना फैलाने का आरोप लगाया और कहा कि डबल वोटिंग और “वोट चोरी” जैसे आरोप पूरी तरह निराधार हैं। उन्होंने राहुल गांधी से या तो 7 दिन में शपथ-पत्र (हलफनामा) देकर सबूत पेश करने या फिर देश से माफी मांगने को कहा।

राहुल गांधी ने तुरंत पलटवार किया और सवाल उठाया कि अगर वही आरोप अनुराग ठाकुर ने भी लगाए थे तो उनसे हलफनामा क्यों नहीं मांगा गया। राहुल ने महाराष्ट्र का उदाहरण देते हुए कहा कि लोकसभा चुनाव में INDIA गठबंधन की जीत के बाद विधानसभा चुनाव में भाजपा गठबंधन की जीत तभी संभव हुई क्योंकि “चुनाव आयोग ने 4 महीनों में एक करोड़ नए वोटर जोड़ दिए” और ये सारे वोट भाजपा को मिले। राहुल ने आरोप लगाया कि “चुनाव आयोग और भाजपा ने मिलकर वोट चोरी की, खासकर कर्नाटक के बेंगलुरु सेंट्रल और महादेवपुरा सीट पर।” उन्होंने डुप्लिकेट प्रविष्टियों, फर्जी पतों और एक ही EPIC नंबर से कई वोट डालने का उदाहरण देते हुए दावा किया कि 1 लाख से ज्यादा वोट चुराए गए।

कानूनी पेंच: नियम 20 और 22 की सीमाएं
चुनाव आयोग ने इन आरोपों को पहले से खारिज दावों की पुनरावृत्ति बताया और राहुल गांधी से पंजीकरण ऑफ इलेक्टर्स रूल्स, 1960 के रूल 20(3)(b) के तहत शपथ-पत्र के साथ सबूत देने को कहा। यह नियम ड्राफ्ट मतदाता सूची प्रकाशित होने के 30 दिनों के भीतर आपत्ति या दावा दर्ज करने की अनुमति देता है। हालांकि, जब सूची अंतिम रूप से प्रकाशित हो जाती है (रूल 22 के तहत), तब रूल 20 लागू नहीं होता। इसी तरह, चुनाव परिणाम को चुनौती देने का एकमात्र वैधानिक उपाय जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत हाईकोर्ट में 45 दिनों के भीतर चुनाव याचिका दाखिल करना होता है। चूंकि 2024 लोकसभा चुनाव के बाद यह समयसीमा समाप्त हो चुकी है, इसलिए राहुल गांधी के आरोप अब इन कानूनी उपायों के दायरे से बाहर हो चुके हैं।

इसके अलावा, रूल 17 कहता है कि यदि दावा या आपत्ति तय समयसीमा और तय प्रारूप में दर्ज नहीं की जाती, तो पंजीकरण अधिकारी उसे खारिज करने के लिए बाध्य है। इस स्थिति में भले ही राहुल गांधी शपथ-पत्र दें, आयोग को नियमों के तहत उनके दावों को खारिज करना पड़ेगा।

संवैधानिक दायरा और आयोग की जिम्मेदारी
हालांकि प्रक्रियागत सीमाएं हैं, लेकिन भारतीय संविधान का अनुच्छेद 324 चुनाव आयोग को चुनावों और मतदाता सूचियों पर “अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण” की व्यापक शक्ति देता है। सुप्रीम कोर्ट ने MS Gill बनाम चीफ़ इलेक्शन कमिश्नर (1978) मामले में स्पष्ट किया था कि जहां स्पष्ट वैधानिक प्रावधान हों, आयोग को उनका पालन करना चाहिए, लेकिन प्रावधानों के अभाव या अपर्याप्तता में आयोग पंगु नहीं रह सकता। यानी आयोग चाहे तो अपने संवैधानिक अधिकारों का प्रयोग कर इन आरोपों पर आंतरिक जांच कर सकता है ताकि जनविश्वास कायम रहे।

झूठी गवाही का खतरा
यदि राहुल गांधी शपथ-पत्र देकर गलत या झूठे आरोप पेश करते हैं, तो यह भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 227 (झूठी गवाही) के तहत अपराध होगा। इसके लिए अधिकतम 7 साल की सजा और ₹10,000 जुर्माना हो सकता है।

राहुल गांधी के गंभीर आरोपों और चुनाव आयोग की सख्त सफाई के बीच मामला कानूनी पेचीदगियों में उलझ गया है। एक ओर प्रक्रियागत कानून (Rule 20 और RPA) के चलते आयोग पर कोई औपचारिक जांच करने की बाध्यता नहीं है, तो दूसरी ओर अनुच्छेद 324 के तहत आयोग पर यह जिम्मेदारी भी है कि वह चुनावों की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर लगे दाग को दूर करने के लिए आंतरिक स्तर पर जांच करे। अब यह देखना होगा कि आयोग संवैधानिक जनादेश का पालन करते हुए इस विवाद पर आगे क्या कदम उठाता है।

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