Bihar Election : चिराग पासवान व पारस पासवान की खगड़िया में होगी जंग, चाचा-भतीजे इस सीट पर ठोंक रहे दावा..

Bihar Election / खगड़िया। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले खगड़िया जिले की अलौली (सुरक्षित) सीट पर पासवान परिवार के दो धड़े आमने-सामने हैं। यह सीट लोजपा (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान और रालोजपा के सुप्रीमो पशुपति कुमार पारस, दोनों के लिए सियासी प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गई है। यही सीट तय करेगी कि पासवान परिवार की सियासत का असली वारिस कौन होगा।

रामविलास पासवान ने यहीं से शुरू की थी सियासी यात्रा
अलौली सीट पासवान परिवार की परंपरागत सीट मानी जाती है। स्वर्गीय रामविलास पासवान ने 1969 में इसी सीट से संयुक्त समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतकर राजनीति में कदम रखा था। उनके बाद यह सीट छोटे भाई पशुपति कुमार पारस के पास गई। पारस ने 1977 से 2005 तक सात बार इस सीट पर जीत दर्ज की। केवल 1980 में कांग्रेस के मिश्री सदा ने उन्हें हराया था।

पारस अब बेटे यशराज को सौंपना चाहते हैं विरासत
पशुपति कुमार पारस अब अपने बेटे यशराज पासवान को राजनीतिक विरासत सौंपने की तैयारी में हैं। यशराज पिछले कई महीनों से अलौली में सक्रिय हैं और पंचायत स्तर पर नुक्कड़ सभाएं कर रहे हैं। उनका लक्ष्य पिता की सीट पर फिर से पासवान परिवार की पकड़ मजबूत करना है।

हालांकि, पारस के लिए राह आसान नहीं है। एनडीए से अलग होकर उन्होंने महागठबंधन का दामन थाम लिया है, लेकिन इस गठबंधन में आरजेडी का वर्चस्व है। वर्तमान में अलौली सीट से आरजेडी के विधायक रामवृक्ष सदा हैं, जो मुसहर समाज से आते हैं। पार्टी में इस समुदाय के यह एकमात्र विधायक हैं, इसलिए आरजेडी उन्हें दोबारा टिकट देने पर विचार कर सकती है। ऐसे में पारस को महागठबंधन से अलौली सीट मिलना मुश्किल दिख रहा है।

चिराग भी कर सकते हैं दखल, करीबी को उतारने की तैयारी
दूसरी ओर, लोजपा (रामविलास) प्रमुख चिराग पासवान भी इस सीट पर नजरें गड़ाए हुए हैं। वह इसे अपने पिता की विरासत मानते हैं और 2025 के चुनाव में यहां अपने किसी करीबी रिश्तेदार या विश्वस्त नेता को उम्मीदवार बना सकते हैं। 2020 में लोजपा (रा) के प्रत्याशी रामचंद्र सदा तीसरे स्थान पर रहे थे, लेकिन इस बार राजनीतिक समीकरण बदलने की उम्मीद है।

दोनों धड़ों में प्रतिष्ठा की जंग तेज
लोजपा (रा) के प्रवक्ता श्रवण अग्रवाल का कहना है कि “अलौली हमारी परंपरागत सीट है, जहां से रामविलास पासवान जी ने राजनीति की शुरुआत की थी। हमें विश्वास है कि यह सीट हमें ही मिलेगी।” वहीं, जिलाध्यक्ष मनीष कुमार ने कहा कि “खगड़िया और अलौली दोनों सीटों पर हमारा मजबूत दावा है। हमारे सांसद राजेश वर्मा ने क्षेत्र में विकास को नई दिशा दी है।”

2005 के बाद कमजोर हुई पकड़, अब फिर से वापसी की कोशिश
2005 के बाद से अलौली में पासवान परिवार की पकड़ कमजोर हुई है। 2010 में जदयू के रामचंद्र सदा ने समीकरण बदल दिए थे, जबकि 2015 में राजद के चंदन कुमार ने पारस को हराया। 2020 में पारस हाजीपुर से सांसद बनने के कारण विधानसभा चुनाव नहीं लड़े। इस बार पासवान परिवार एक बार फिर अपनी खोई जमीन वापस पाने के लिए पूरी ताकत झोंक रहा है।

अलौली बनेगी पासवान परिवार की अगली सियासी परीक्षा
चुनाव विश्लेषकों का मानना है कि अलौली सीट पर पासवान परिवार का यह टकराव केवल चुनावी नहीं, बल्कि नेतृत्व की जंग भी है। चिराग जहां खुद को रामविलास पासवान की राजनीतिक विचारधारा का असली उत्तराधिकारी बताने में जुटे हैं, वहीं पशुपति पारस अपने बेटे के जरिए परिवार की परंपरा को आगे बढ़ाना चाहते हैं।

अगले चुनाव में अलौली सीट न केवल खगड़िया की राजनीति तय करेगी, बल्कि यह भी बताएगी कि पासवान परिवार का असली “राजनीतिक वारिस” कौन होगा।

Youthwings