रूस ने तालिबान को दी आधिकारिक मान्यता: क्या भारत भी उठाएगा बड़ा कदम?

अफगानिस्तान में तालिबान शासन को लेकर अंतरराष्ट्रीय राजनीति में बड़ा मोड़ आ गया है। रूस ने तालिबान को आधिकारिक मान्यता देकर एक नया भू-राजनीतिक अध्याय शुरू कर दिया है। ऐसा करने वाला रूस दुनिया का पहला देश बन गया है, जिसने सार्वजनिक रूप से तालिबान शासन को वैध और आधिकारिक माना है। यह घोषणा काबुल में तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी और रूस के राजदूत दिमित्री झिरनोव की बैठक के बाद की गई।
मास्टरस्ट्रोक या रणनीति?
राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का यह फैसला वैश्विक राजनीति में ‘मास्टरस्ट्रोक’ माना जा रहा है। रूस ने इस घोषणा के साथ अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा नियुक्त नए राजदूत गुल हसन हसन से आधिकारिक प्रमाण पत्र भी स्वीकार कर लिया है। रूस के विदेश मंत्रालय ने कहा कि यह कदम दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देगा और अफगानिस्तान की स्थिरता में मदद करेगा।
तालिबान का स्वागत, भारत के विकल्प खुले
तालिबान सरकार ने रूस के फैसले को ऐतिहासिक कदम बताया है। तालिबान विदेश मंत्री मुत्ताकी ने कहा कि यह अन्य देशों के लिए एक उदाहरण है। अब सवाल उठ रहा है कि क्या भारत भी जल्द ही तालिबान को मान्यता देगा? भारत और रूस की गहरी दोस्ती और तालिबान से हाल के संपर्कों—जैसे भारतीय राजनयिक बिक्रम मिस्री की तालिबान विदेश मंत्री से मुलाकात—को देखते हुए यह संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
इतिहास की करवट: अफगानिस्तान में रूस और अमेरिका की भूमिका
तालिबान के साथ रूस का यह रिश्ता ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी अहम है। सोवियत संघ के समय अफगानिस्तान रूस और अमेरिका के बीच शीत युद्ध का केंद्र बन गया था। तब अमेरिका ने पाकिस्तान के सहयोग से मुजाहिदीन तैयार किए, जिन्होंने रूसी सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। बाद में अमेरिका ने भी अफगानिस्तान को छोड़ दिया, लेकिन तालिबान ने फिर काबुल पर कब्जा कर लिया।
अब उसी अफगानिस्तान को रूस ने न केवल मान्यता दी है, बल्कि प्रतिबंध भी हटा लिए हैं, यह दर्शाता है कि रूस अब तालिबान के साथ स्थिरता और रणनीतिक साझेदारी की ओर बढ़ रहा है।
मान्यता मिलने के क्या मायने हैं?
जब कोई देश किसी अन्य शासन को औपचारिक मान्यता देता है, तो वह उसे एक स्वतंत्र और वैध सरकार के रूप में स्वीकार करता है। यह मान्यता अंतरराष्ट्रीय संधियों, विशेषकर 1933 की मोंटेवीडियो कन्वेंशन के चार मूल तत्वों पर आधारित होती है—स्थायी जनसंख्या, निश्चित सीमा, सरकार और विदेशों से रिश्ते बनाने की क्षमता। मान्यता मिलने से उस सरकार को वैधता, अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में भागीदारी, और दूसरे देशों के साथ व्यापार व कूटनीतिक रिश्ते बनाने की सुविधा मिलती है।
तालिबान पर अब भी सवाल
हालांकि तालिबान की मान्यता को लेकर महिलाओं पर प्रतिबंध, मानवाधिकारों की स्थिति और शिक्षा पर रोक जैसे मुद्दों पर वैश्विक आलोचना बनी हुई है। महिलाओं को नौकरियों, सार्वजनिक स्थलों, और उच्च शिक्षा से वंचित कर देने के कारण पश्चिमी देश अब भी तालिबान को मान्यता देने से पीछे हट रहे हैं।
भारत की राह क्या होगी?
रूस के फैसले के बाद भारत के सामने भी रणनीतिक और व्यावसायिक हितों को ध्यान में रखते हुए फैसला लेने का दबाव है। खासतौर पर जब तालिबान ने पाकिस्तान के दावों के विपरीत ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के समय भारत का परोक्ष रूप से साथ दिया था। भारत अफगानिस्तान में बुनियादी ढांचे, निवेश और सुरक्षा के लिहाज से बड़ी भूमिका निभाता आया है।