छत्तीसगढ़ में निकली भगवान जगन्नाथ की बाहुड़ा रथ यात्रा, श्रद्धालुओं में दिखा जबरदस्त उत्साह

भगवान जगन्नाथ की बाहुड़ा यात्रा यानी रथ वापसी यात्रा आज पूरे छत्तीसगढ़ में श्रद्धा और उल्लास के माहौल में निकाली जा रही है। नौ दिनों तक मौसी के घर यानी गुंडिचा मंदिर में विश्राम करने के बाद भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ अपने मूल निवास श्रीमंदिर लौट रहे हैं। राजधानी रायपुर और महासमुंद जिले के पिथौरा में इस दिव्य यात्रा को लेकर व्यापक तैयारियां की गई हैं और भक्तों में भारी उत्साह देखा जा रहा है।
दोपहर 3 बजे से शुरू हुई राजधानी रायपुर में रथ यात्रा
रायपुर में भगवान की वापसी यात्रा दोपहर 3 बजे से शुरू हुई। यात्रा में हजारों श्रद्धालु शामिल हुए जो भगवान के रथ को खींचने के लिए उमड़े। पूरे मार्ग को फूलों और सजावटी झंडियों से सजाया गया। भक्ति गीत, ढोल-नगाड़े और कीर्तन की धुनों के बीच रथ यात्रा ने धार्मिक उत्सव का रूप ले लिया।
इस अवसर पर छत्तीसगढ़ विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह, नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल, भाजपा रायपुर जिला अध्यक्ष रमेश ठाकुर और अन्य कई गणमान्य अतिथि उपस्थित रहे। उन्होंने रथ खींचकर पुण्य लाभ लिया और भक्तों के साथ भगवान की आराधना की।
समिति ने तैयारियों को दिया भव्य रूप
जगन्नाथ सेवा समिति के अध्यक्ष पुरंदर मिश्रा ने जानकारी देते हुए बताया, “यह आयोजन केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं बल्कि श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक है। हर साल इस आयोजन को और भी भव्य स्वरूप देने का प्रयास किया जाता है। भगवान जगन्नाथ की कृपा और जनसमर्थन से आयोजन पूरी श्रद्धा और व्यवस्था के साथ संपन्न हो रहा है।”
पिथौरा में भी निकली वापसी यात्रा, सुबह से उमड़ा जनसैलाब
राजधानी रायपुर के अलावा महासमुंद जिले के पिथौरा में भी भगवान जगन्नाथ की बाहुड़ा यात्रा निकाली गई। सुबह से ही मंदिर परिसर में भजन, कीर्तन और पूजा-पाठ का माहौल बना रहा। बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन और रथ खींचने के लिए जुटे। रथ के मंदिर पहुंचने के बाद भगवान को विशेष पूजा के बाद गर्भगृह में विश्राम कराया गया।
भगवान की पांच महीने की चीर निद्रा शुरू
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, वापसी यात्रा के बाद भगवान श्रीजगन्नाथ चीर निद्रा यानी ‘योगनिद्रा’ में चले जाते हैं। यह योगनिद्रा पांच महीनों तक रहती है। इस अवधि में कोई मांगलिक कार्य जैसे विवाह आदि नहीं होते। जब भगवान की निद्रा टूटती है, तब तुलसी विवाह, शालिग्राम विवाह और अन्य शुभ कार्य फिर से शुरू किए जाते हैं।
बाहुड़ा यात्रा का धार्मिक महत्व
‘बाहुड़ा’ ओड़िया भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘वापसी’। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा जी जब अपने रथों पर सवार होकर गुंडिचा मंदिर से श्रीमंदिर लौटते हैं, तो इस यात्रा को ‘बाहुड़ा यात्रा’ कहा जाता है। यह रथ यात्रा की ही तरह भव्य और भक्तिभाव से परिपूर्ण होती है, फर्क बस इतना है कि यह यात्रा वापसी की होती है।
भगवान बलभद्र के रथ का नाम ‘तालध्वज’, देवी सुभद्रा के रथ का नाम ‘दर्पदलन’ और भगवान जगन्नाथ के रथ का नाम ‘नंदीघोष’ होता है। सभी रथ पहले ही दक्षिण की ओर मोड़ दिए गए थे और गुंडिचा मंदिर के नकाचना द्वार के पास खड़े थे, आज वापसी की यात्रा पूरी करने के लिए।
श्रद्धा, परंपरा और उल्लास का संगम
भगवान जगन्नाथ की बाहुड़ा यात्रा छत्तीसगढ़ के श्रद्धालुओं के लिए सिर्फ एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि श्रद्धा और परंपरा का संगम है। जैसे-जैसे रथ आगे बढ़ता है, भक्तों की आस्था भी साथ-साथ आगे बढ़ती है। इस पावन अवसर पर पूरा वातावरण भगवान के जयकारों से गुंजायमान रहा और श्रद्धालुओं ने पुण्य का लाभ अर्जित किया।