गुरु घासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसरों को हाईकोर्ट से नहीं मिली राहत, नमाज़ के लिए मजबूर करने का मामला गंभीर

बिलासपुर। गुरु घासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी, बिलासपुर से जुड़ा एक संवेदनशील मामला इन दिनों सुर्खियों में है। विश्वविद्यालय के एनएसएस कैंप के दौरान छात्रों को नमाज़ पढ़ने के लिए कथित तौर पर मजबूर करने वाले सात प्रोफेसरों को छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट से कोई राहत नहीं मिली है। इन शिक्षकों द्वारा दर्ज एफआईआर को रद्द करने के लिए लगाई गई याचिकाएं कोर्ट ने खारिज कर दी हैं। कोर्ट ने इस मामले को “गंभीर” मानते हुए कहा है कि एफआईआर को रद्द करना इस स्तर पर उचित नहीं होगा।
क्या है मामला?
एनएसएस (नेशनल सर्विस स्कीम) की ओर से 26 मार्च से 1 अप्रैल 2025 के बीच बिलासपुर के शिवतराई गांव में एक शिविर आयोजित किया गया था। छात्रों की शिकायत के मुताबिक, ईद के दिन शिविर के समन्वयक और अन्य शिक्षकों ने हिंदू छात्रों को नमाज़ पढ़ने के लिए मजबूर किया। आरोप है कि यह कार्य उन छात्रों की धार्मिक आस्था के विरुद्ध था और उन्होंने इस दबाव का विरोध भी किया।
इस मामले में जिन सात शिक्षकों पर आरोप लगे हैं, उनके नाम हैं – दिलीप झा, मधुलिका सिंह, सूर्यभान सिंह, डॉ. ज्योति वर्मा, प्रशांत वैष्णव, बसंत कुमार और डॉ. नीरज कुमारी।
छात्रों की शिकायत पर इन सभी के खिलाफ कोटा थाने में भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धाराएं 190, 196(1)(B), 197(1)(B), 197(1)(C), 299, 302 व अन्य के तहत केस दर्ज किया गया है।
हाईकोर्ट ने याचिका क्यों खारिज की?
मुख्य न्यायाधीश राकेश सिन्हा की अगुआई वाली डिवीजन बेंच ने याचिका पर सुनवाई करते हुए साफ कहा कि इस मामले में प्राथमिक दृष्टया गंभीर आरोप लगे हैं और जांच प्रक्रिया को इस स्तर पर बाधित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि एफआईआर को रद्द करने का आधार पर्याप्त नहीं है और जांच एजेंसियों को स्वतंत्र रूप से अपना कार्य करने देना चाहिए।
प्रोफेसरों की दलीलें
याचिकाकर्ता शिक्षकों की ओर से कहा गया था कि उन्होंने किसी छात्र पर कोई धार्मिक क्रिया करने का दबाव नहीं डाला और उन पर लगाए गए आरोप मनगढ़ंत हैं। उनके अनुसार, छात्रों को ईद के मौके पर सांप्रदायिक सद्भाव दिखाने की दृष्टि से केवल आमंत्रित किया गया था, न कि मजबूर किया गया।
छात्रों का आरोप और प्रतिक्रिया
वहीं दूसरी ओर, छात्र पक्ष ने स्पष्ट कहा कि शिक्षकों ने न केवल नमाज़ में शामिल होने का दबाव डाला, बल्कि इसका विरोध करने पर छात्रों को शिविर से बाहर निकालने की धमकी भी दी गई। छात्रों ने मामले की शिकायत विश्वविद्यालय प्रशासन और थाने में की, जिसके बाद यह मामला हाई प्रोफाइल बन गया।